
मस्जिदे अक़्सा को बहुत पढ़े लिखे इंजीनयर,डॉक्टर सरीखे लोग भी डोम आफ दी रॉक सुनहरी गुम्बद को अक्सर मस्जिदे अक़्सा समझ लेते है और मुसलमानो की बड़ी आबादी भी असली मस्जिदे अक़्सा को नही पहचानती,
ये लोगों की ग़लती नही है यहूद की मीडिया वॉर स्ट्रेटजी है पूरी दुनियां का मीडिया यहूद के कदमो तले दबा हुआ है मालिक है यहूद वर्ल्ड मीडिया का,
दुनियां डोम ऑफ दी रॉक ( सुनहरी गुम्बद) को मस्जिदे अक़्सा समझे और यहूद दज्जाल के पैरोकार असली मस्जिदे अक़्सा को शहीद करके आसानी से थर्ड टेम्पिल ऑफ सोलोमन के नाम पर शैतान दज्जाल के मुख्यालय को स्थापित कर सके जोकि उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश है और इनका अक़ीदा है जब तक ये अपना मस्जिद शहीद करके टेम्पिल नही बनाएंगे मसीहे दज्जाल ज़ाहिर नही होगा,
ये सुनहरी गुम्बद की तस्वीर का भ्रम जाल फैलाकर असली मस्जिदे अक़्सा को शहीद करना उनको आसान होगा दुनियां तो सुनहरी गुम्बद को खड़ा देखेगी जबकि असल लड़ाई उस गुम्बद की है ही नही,
आपको तस्वीरों के या कहे मीडिया वॉर स्ट्रेटजी के दो छोटे से भारत के उदहारण देता हूँ,
याकूब मेमन की आपको कभी भी 69 साल के बूढ़े, कमज़ोर,लाचार सफेद दाढ़ी वाली तस्वीर नही दिखाई गई हमेशा उनकी 35 साल की जवानी की तस्वीर दिखाई गई इसलिए किसी को उनसे हमदर्दी ना पैदा हो जाए,
उन्होंने क्या किया या नही किया वो किसी और दिन लिखूंगा
दूसरा तस्वीर इसी स्ट्रेटिजी का ताजा उदाहरण शाहबुद्दीन साहब है लगभग 20 साल से जेल में थे जो तस्वीर दिखाई जाती है वो 40-45 साल की उम्र की है अब खुद अन्दाज़ा लगा लीजिए कि वो इंतकाल से पहले कैसे दिखते होंगे,
मैंने यहां नक्शे के साथ तीन तस्वीरे डाली है असली मस्जिदे अक़्सा की अगर सच्चाई लोगो तक पहुंचा सकते हो तो इतनी शेयर करो कि बातिल हिल जाए और लोगो की गलतफहमी दूर हो जाए
मैंने अपना काम किया अब आपकी मर्जी है शेयर करे या ना करे,
अल्लाह मुझे और हर मोमिन को हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे




