About Birth of Maula Ali AlaihisSalam Hazrat Khawaja Gareeb Nawaz Mention Fact

According to Traditions, Hazrat Imam Ali ع was born on the 13th of Rajab About 23 years before Hijrah, within the Blessed Precincts of the Holy Kaaba.

Sayyed Khwaja Moinuddin Hasan Chishti (Ajmeri) ر Mentions this Fact in His Famous Quartet:

Waqtiki Bakabah Murtaza Shood Paida;
Dar Ard U Sama Jalwa Numa Shood Paida
Jibra’eel Za Asm’an Faru Amad U Guft;
Ai Khatmi Rusul Farzand Ba Khanai Khuda Shood Paida.
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What a time it was, when Ali ع was born in the Kaaba. Shimmering Light (Nur) was spread right from the Earth to the Sky.
Jibra’eel appeared and proclaimed: O Messenger ‎(صلى الله عليه وآله وسلم‎)! What a blessing of Allah ‎ﷻ‬that a son has been born inside the Kaaba
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13th Rajab Narray Haideri Ya Ali عليه السلام .
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اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ سَيِّدِنَا مُحَمَّد

Urs e Khawaja Gareeb Nawaz Radiallahu anhoo

Hazrat Khwaja Moinuddin Hasan Chisty

Eid e Chistiya Tamam Logo Ko 809 Urs e Khwaja Garib Nawaz Mubarak Ho 💖💞🌹💖💞🌹💖💞
Tere Paaye Ka Koi Hamne Na Paaya Khwaja
Tu Zaminwalo Pe ALLAH Ka Saaya Khwaja.
Saiyyad e Khasta Ko Ummide Huzoori Kab Thi
Sadqe Jaoo’n Tere Kya Khoob Bulaya Khwaja
~Huzoor Syed Aley Mustafa Alayhir Rahma
Haq Moin Ya Moin,Narey khwaja Ya khwaja
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“Ya Garib Nawaz – O Benefactor of the Poor”
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As Salaam Ya Aalae Nabi
As Salaam Ya Aulad e Fatimah Wa Ali
As Salaam Ya Hasani Hussaini
As Salaam Ya Ata e Rasool
As Salaam Ya Nayab e Rasool
As Salaam Ya Noor e Shah e Najaf
As Salaam Ya Rehan e Gulshan e Sayeda Fatima
As Salaam Ya Chirag e Aulia
As Salaam Ya Shaykh e Behrobar
As Salaam Ya Garib Parwar
As Salaam Ya Mujaddid e Paak
As Salaam Ya Sultan ul Hind
As Salaam Ya Habib ul Aulia
As Salaam Ya Qiblah e Ashiqeen
As Salaam Ya Ayatullah
As Salaam Ya Mojizat e Rasool ALLAH
As Salaam Ya Moinuddin
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اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ سَيِّدِنَا مُحَمَّد
Aap Tamaam Ko Huzoor Ghareeb Nawaaz Sarkaar Ka 809th Urs e Shareef Bohot Bohot Mubarak.
“Charaagh e Chisht” Is Saal Huzoor Ghareeb Nawaaz Moinuddin Chishti Ajmeri Sanjari Hassani Al Hussaini Razi Allahu Anhu Ki Shaan e Paak Me Mujhe Ek Mukhtasar Risala Likhne Ka Sharf Haasil Huwa Hain.
Is Risaale Ka Naam “Charagh e Chisht” Hai Isme Huzoor Ghareeb Nawaaz Sarkaar Ki Mukhtasar Sawane Hayaat Aur Mukhtasar Talimaat Hain Aap Tamaam Hazraat Se Guzarish Hain Ke Baghaur Padhiye Aur Apne Ahbaab o Aghyaar Ko Bhi Batayen.
Huzoor Ghareeb Nawaaz Sarkaar Mujh Ahqar Ke Ye Adna Se Tohfe Ko Qubool Farmayen. ( Ilaahi Aameen Ba Tufail e Pantan e Paak. )

एक मरतबा शहर के हाकिम ने एक शख्स की गर्दन उड़ा दी उसकी मां रोती हुई ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुई और बेटे की मौत की शिकायत की,आप उसे लेकर फौरन क़त्ल गाह पहुंचे और मक़तूल का सर धड़ से मिलाकर फरमाया कि अगर वाकई तू बेगुनाह क़त्ल हुआ है तो अल्लाह के हुक्म से खड़ा हो जा,आपका इतना कहना था कि फौरन वो लड़का उठकर खड़ा हो गया अब जो हाकिम ने देखा तो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगी

📕 महफिले औलिया,सफह 344

हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ शैख शहाब उद्दीन सहरवर्दी और शैख अहद उद्दीन किरमानी रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन एक जगह बैठे हुए थे कि एक बच्चा तीर कमान लिए हुए सामने से गुज़रा,ख्वाजा गरीब नवाज़ फरमाते हैं कि ये बच्चा एक दिन दिल्ली का बादशाह बनेगा चुनांचे आपकी कही बात हक़ हुई और वही बच्चा सुल्तान शम्शुद्दीन अल्तमश के नाम से मशहूर हुआ और 26 साल दिल्ली पर हुकूमत की

📕 इक़्तेबासुल अनवार,सफह 377

एक मर्तबा सरकार गरीब नवाज़ अपने मुरीद शैख अली के साथ कहीं सफर पर जा रहे थे,शेख अली किसी के मकरूज़ थे और जिसका कर्ज़ था उसने शेख अली को रास्ते में रोक लिया और कहा कि आज पैसे दिए बिना जाने नहीं दूंगा,ख्वाजा गरीब नवाज़ ने पहले तो उसे समझाया कि अभी इनके पास पैसे मौजूद नहीं है जब होगा तो तुम्हे दे देंगे मगर वो नहीं माना और अपनी ज़िद पर अड़ा रहा,सरकार गरीब नवाज़ को जलाल आ गया और अपनी चादर उतारकर जमीन पर फेंक दी और उससे कहा कि तेरा जितना भी कर्ज़ है चादर हटाकर निकाल ले पहले तो उसने मज़ाक समझा मगर जैसे ही चादर हटा कर देखता है तो सोने चांदी के ढेर नज़र आते हैं,इतना माल देखकर उसकी नियत खराब हो जाती है और अपनी दी रकम से ज़्यादा उठाना चाहता है तो फौरन ही उसका हाथ सिल हो जाता है,रो कर हुज़ूर की बारगाह में अर्ज़ करता है आपको उसके आंसुओं पर रहम आ जाता है और उसे माफ कर देते हैं फौरन ही वो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगता है और अपना सारा कर्ज़ माफ कर देता है और आपसे बैयत करता है

📕 असरारूल औलिया,सफह 202

एक मर्तबा अपने किसी पड़ोसी के जनाज़े में शामिल हुए बाद मदफून कुछ देर वहीं ठहरे,ख्वाजा बख्तियार काकी फरमाते हैं कि मैंने देखा कि हज़रत के चेहरे का रंग अचानक बदल गया फिर कुछ देर बाद सही हो गया और फरमाते हैं कि बैयत भी अजीब चीज़ है पूछा क्यों तो फरमाते हैं कि इस मुर्दे पर अज़ाब के फरिश्ते आ पड़े थे मुझे बड़ा सदमा हुआ फिर अचानक क़ब्र में सरकार उस्मान हारूनी तशरीफ लाये और फरिश्तो से कहा कि ये मेरा मुरीद है इसे अज़ाब ना करो तो कहने लगे कि बेशक आपका मुरीद है मगर आपके रास्ते पर ना चला तो फरमाया कि ठीक है कि नहीं चला मगर इस फक़ीर से निस्बत रखी यही क्या कम है तो ग़ैब से निदा आई कि मुझे उस्मान हारूनी की खातिर अज़ीज़ है लिहाज़ा उसे छोड़ दो और फरिश्ते वापस हुए

📕 मोईनुल अरवाह,सफह 188

करामत को सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की इतनी है कि लिखने लगूं तो पूरी किताब बन जाए बस इतने पर ही इक्तिफा करता हूं

आपके खुल्फा तो बहुत हैं मगर 65 खास खलीफा हैं जिसमे खलीफये अकबर हज़रत ख्वाजा क़ुतुब उद्दीन बख़्तियार काकी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं

आपकी लिखी हुई किताबें अनीसुल अरवाह-कशफुल असरार-गंजुल असरार-रिसालये तसव्वुफ मन्ज़ूम-रिसालये आफाक़ वन्नफ्स-हदीसे मआरिफ-दीवाने मोईन-रिसालये मौजूदिया मशहूर हैं

फरमाते हैं कि मुसलमान को उतना नुक्सान गुनाह करने से भी नहीं होता है जितना कि किसी मुसलमान को जलील करने से होता है और फरमाते हैं कि नेकों की सोहबत में बैठना नेकी करने से अफज़ल है और बुरों की सोहबत में बैठना गुनाह करने से बदतर है और फरमाते हैं कि काफिर 100 बरस तक ला इलाहा इल्लल्लाह कहे मगर हरगिज़ मुसलमान नहीं हो सकता लेकिन एक मर्तबा मुहम्मदुर्रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कहने से 100 साल के कुफ्र दूर हो जाते हैं और फरमाते हैं कि रिज़्क़ की कुशादगी के लिए हर नमाज़ के बाद कसरत से पढ़े सुब्हानल लज़ी सख्खरा लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रनीन سبحان الّذي سخر لنا هذا وما كنا له مقرنين (दुआ-ए सफर)

633 हिजरी शुरू होते ही आपको इल्म हो गया था कि ये मेरा आखिरी साल है लिहाज़ा सबको वसीयतें की ख्वाजा बख्तियार काकी के नाम खिलाफत नामा लिखवाया अपनी अमानतें उनके सुपुर्द की,6 रजब की शब रात भर कमरा बंद करके ज़िक्रो अज़कार करते रहे सुब्ह को जब बहुत देर तक आवाज़ नहीं आई तो मजबूरन दरवाज़ा तोड़ना पड़ा आप खुदा की राह में विसाल फरमा चुके थे,और आपकी पेशानी मुबारक पर लिखा था जिसका तर्जुमा ये है “ये अल्लाह के हबीब थे और अल्लाह की मुहब्बत में वफात पाई” आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े साहबज़ादे ख्वाजा फखरुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने पढ़ाई और आपको उसी हुजरे में दफ्न किया गया

📕 तारीखुल औलिया,सफह 98–113
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