14th RAMZAN YAUM E SHAHADAT HAZRAT E MUKHTAR IBNE ABU UBAID E THAQAFI R.A

14th RAMZAN YAUM E SHAHADAT HAZRAT E MUKHTAR IBNE ABU UBAID E THAQAFI R.A

“Khuda ki Qasam Me Us Waqt Tak Chain Se Nahin Bethunga Jab tak Hussain ibne Ali (A.S.) ka Ek Bhi Qatil Zinda hai”⁣

~Janabe Mukhtar R.a

Khoob Tareekh Chuni Chaudhwi Ramzan Chale,⁣
Ban Ke 14ع Ka Sue Khuld Wo Mehman Chale,⁣
Keh Ke Is Dunia E Faani Ko Salam E Akhir,⁣
Apne Moula Se Mulaqat Ko Mukhtarع Chale..⁣

मुख़्तारसक़फी़औरदावाए_नबूवत

हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद कर देने के बाद, जुल्म ओ कत्ल का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि हकी़क़तन मौला अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने से शुरू हुआ सिलसिला इमाम हसन असक़री की शहादत तक जा़री रहा और आगे भी चलता रहा। करबला की जंग के लगभग अस्सी साल बाद तक हज़रत हसन अलैहिस्सलाम के बच्चों को ढूँढ़ ढूँढ़कर कत्ल किया गया।

जब करबला बरपा हुई और अहलेबैत अलैहिस्सलाम का घर का घर दीन पर कुर्बान हो गया, तब इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम सहित नबी अलैहिस्सलाम के घर की तमाम बहुओं और बेटियों को भी कै़दी बना लिया गया।

इमाम सज्जाद की रिहाई के वक्त ताबाईन, तब्बे अल ताबाईन की बडी़ तादाद मौजूद थी और कुछ सहाबा कहलाने वाले लोग भी मौजूद थे, लेकिन किसी ने इमाम अलैहिस्सलाम का साथ ना दिया, बदला लेना तो बहुत दूर की बात है।

ऐसे में मुख़्तार सक़फी़, आगे आए और करबला में हुए जुल्म का बदला लेने की कोशिशो में लग गए। कुछ आलिम इल्जा़म लगाते हैं की उन्हें हुकू़मत की चाह थी। मौलवी साहब, हम बहस नहीं करेंगे, अब ये तो कोई साबित नहीं कर सकता की किसके दिल में क्या था, आपको जंगों में हुकूमत की चाह दिखी और हमें बदला ए करबला। बहरहाल, हुकूमत की चाह उस वक्त पचासों लोगों को थी लेकिन क्या साथ में करबला का बदला लेने की चाह भी थी?

अब आते हैं आपके सबसे बडे़ इल्जा़म पर। हज़रत मुख़्तार ने दावा ए नबूवत किया। जो लोग ये इल्जा़म लगाते हैं वो कहते हैं की मुख़्तार कहता था मेरे पास जिब्रील आते हैं जबकि मुख़्तार सक़फी़ का दावा ये था की मेरे ख्वाब में मौला अली अलैहिस्सलाम आते हैं और हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम के दुश्मनों और खारजियों से लड़ने का हुक्म देते हैं।

ये दावा करना नबूवत की दलील नहीं है बहरहाल ख्वाब में मौला अली आने को बदलकर, मिलने के लिए जिब्रील का आना किया गया ताकि उनके दावे को नबूवत का दावा साबित किया जा सके।

आखिरी बात ये कि, अगर हम बाग ए फदक़ का मसला देखें या मरवान को गवर्नर बनाने का या मरवान को बाग़ देने का तो ऐसे कई मसले हैं जो दौर ए खिलाफ़त ए राशिदा में हुए जिनपर बहस की जा सकती हैं, तो मुख़्तार सक़फी़ के दौर पर बहस होना ताज्जुब की बात नहीं। बहुत सी किताबों में मुख़्तार सक़फी़ को अच्छा लिखा है और बहुत सी किताबों में ये साबित करने की कोशिश की गई है की उन्होंने अहलेबैत अलैहिस्सलाम का मसला इसलिए उठाया ताकि हुकूमत पा सकें और कुछ चंद किताबों में उन्हें काफि़र लिखा गया है।

बहरहाल, आप वो ही हैं जिनकी वजह से सालों बाद इमाम सज्जाद मुस्कुराए थे और चूँकि आपने मुआविया की औलादों, गुलामों और लोगों को हराया और मारा इसलिए बनु उमैया ने आपके खिलाफ़ झूठी बातें गढी़ और फैलाईं।

अल्लाह हम सबको हक़ आम करने वाला बनाए।

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